जनकपुरधाम ।
आदिशक्ति महामाया ईस धर्ती पर प्रकट होने के लिए सबसे सर्बोत्तम भुमिको चुनी मिथिला भुमि । मिथिला महात्म के अनुसार म आकार का अर्थ होता है ब्रम्हा,थ आकार का अर्थ होता है बिष्णु और ल आकार का अर्थ होता है महेश्वर । मिथिला महात्म के अनुसार उतरमे हिमालय, दक्षिण मे गँगा, पुर्वमे कोशी नदी, और पश्चिममे गण्डकी धारा को मिथिला क्षेत्र माना गया है ।
्मिथिला माध्यमिकी परिक्रकमा हरेक फाल्गुण माहका अमावश्या तिथिके दिन जनकपुरधाम १२ स्थित हनुमानगढीमे एकत्रित होकर प्रतिपदाके दिन बिधिबत रुपमे भारतके कल्नासे शुरु करते है । ये १५ दिनोतक चलने बाले परिक्रमाका सोलहवा दिन फाल्गुण पुर्णिमाके दिन फिर जनकपुरधाम पहुँचकर बिधिवत रुपसे समाप्ति करते है । ए जनकपुरधामका हनुमान नगर अर्थात हनुमान गढी है । यहाँ पर हनुमान जीका मन्दिर है । यहाँ पर अलग अलग जगहोसे माता सिता और राम का डोलाको लाया जाता है । पहला दिन कचुरीसे मिथिलाबिहारीका डोला और जनकपुरधाम जानकी मन्दिरसे किशोरी जी का डोला लायी जाती है । और डोलाके साथमे अगले सुबह परिक्रमाके लिए लोग निकल पडते है । परिक्रमा की शुरुवात करनेसे पुर्व नेपाल भारत सहित दुर दुर से श्रद्धालु भक्तगण, और साधु सन्त यहाँपर लाखौके तादादमे इकठठा होते है । १५ दिनोतक नेपाल भारतके अन्य हिस्सोको पार करते हुए गुजरने वाले परिक्रमाका समाप्ति भी नेपालके जनकपुरधाममे आकर हि खत्म होता है ।
कहाजाता है कि १५ दिनोका ए कठोर परिक्रमा करनेसे मनोबाँञ्छित मनोकामना पुरी होती है और चारो धाम घुमनेका फल की प्राप्ति भी होती है । परिक्रमा करनेके लिए लोग सर पर साजो सामान और खाली पैर निकलते है । परिक्रमाके दौरान लहसन और प्याज तक खाना बर्जित किया गया है ।
परिक्रमामे निकलनेके लिए लोग अपनी अपनी बैल गाडी व ट्रैक्टरमे १५ दिनोके लिए खाने पिने व सोनेका सामाग्री डाल के निकलते है । १५ दिनोमे हर दिन अलग अलग पडावो पर बिश्राम करते है और फिर अगले दिन अगले पडावके लिए निकल पडते है । हर पडाव पर शिवलिङ स्थापित है । वहाँ पर तलावमे स्नान कर भोलेनाथका शिवलिङ पर जल अर्पित कर सुबह सुबह अगली पडावके लिए श्रद्धालु साधु सन्त लोग निकल पडते है । जहा जहा पडाव पर पहुँचते है वहा वहाँ मेला भी साथमे चलते है तो वही स्थानिय लोग भी मेला देखने व मेलेमे सामान बेचनेके लिए भारी सँख्यामे आते है । पहली दिन यहाँ पर श्रद्धालुओकी सँख्यामे कमी देखी जा सकती है , मगर जब परिक्रमाका निकलनेका समय होता है तो भारी तादादमे लोग परिक्रमाके लिए सहभागी होते है । हरेक श्रद्धालु सितारामका जाप करते हुए आगे बढते है । और हर पडाव पर रामलीलाकी प्रदर्शन भी किया जाता है । वही कुछ साधु सन्त अपना कर्तब भि दिखाते है । हर पडाव पर श्रद्धालुओके लिए निःशुल्क खानेपिनेके ब्यबस्था और इलाजके वास्ते दवाकी ब्यवस्था भी होता है ।
आज पडाव स्थल पर श्रद्धालु बिश्राम कर रहे है तो कुछ श्रद्धालु अपने अपने खाने पिनेके सामाग्री बनानेमे जुटे है । साम होने लगा है, सुरज धिरे धिरे डुब रही है । कल सुबह अर्थात मध्य रात सेही श्रद्धालु स्नान कर शिवलिङ पर जल अर्पित कर अगले पडाव कल्ना के लिए निकल पडेङ्गे । ईसी तरह तिसरा दिन फुलहर, चौथा दिन मठिहानी , पाँचवा दिन जलेश्वर, छठा दिन मडई, सातवा दिन ध्रुवकुण्ड , आठवा दिन कञ्चनवन, नवमा दिन , पर्वता, दशवा दिन धनुषाधाम, ग्यारवहा दिन सतोषर, बारहवा दिन औरही, तेरहवा दिन करुणा, चौधवा दिन बिसौल, १५ हँवा दिन जनकपुरधाम पहुँचकर बिश्राम कर १६ हँवा दिनमे जनकपुरधाममे अन्तर्गृह परिक्रमा करके इस परिक्रमाका समाप्ति करते है ।